Monday, August 22, 2011

भू-मण्डल के स्वामी


डा. उमेश महादोषी
                                                                                                        


‘नहीं सर, इतने सम्वेदनशील विषय पर मैं किसी विदेशी विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी की सलाह नहीं दे सकता। सर मेरा अनुमान है कि इससे हमारे विश्वविद्यालय ही नहीं, देश को भी भविष्य में नुकसान हो सकता है। प्रो. जयेन्द्र और प्रो. नारंग जैसी प्रतिभाओं का हमें बहुत सोच समझकर और देश के हित में उपयोग करने की रणनीति बनानी चाहिए। मैं उन दोनों के बिषयों कम्प्यूटर विज्ञान और न्यूक्लियर विज्ञान के समन्वय से एक नया कोर्स तैयार करने और उसे अपने विश्वविद्यालय में चलाने के आपके विचार से उत्साहित हूँ और उसका पूरा समर्थन भी करता हूँ। पर सर, मेरा मानना है कि हमारे ये दोनों युवा प्रोफेसर्स किसी भी विदेशी प्रोफेसर से इस नए बिषय पर कहीं ज्यादा सक्षम सिद्ध होंगे।’ प्रति-उपकुलपति प्रो. सिन्हा ने अपनी दलील उपकुलपति प्रो. राठौर के सामने रखी। प्रो. राठौर ने एक बार सोचा और प्रो. सिन्हा को समझाते हुए बोले- ‘सिन्हा जी, आपने अपनी स्पष्ट राय मेरे सामने रखी, मुझे अच्छा लगा। पर यह प्रोग्रेसिव नजरिया नहीं है। आज के ग्लोबलाइजेशन के जमाने में इतना क्लोज्ड दायरे बनाकर नहीं चला जा सकता। कुछ रिस्क भी लेने ही पड़ते हैं। फिर हमारे मैनेजमेन्ट और केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री महोदय की भी यही इच्छा है कि इस बिषय पर हमें उनके द्वारा प्रस्तावित विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी करनी ही चाहिए। कुछ फायदा उनसे हमारे विश्वविद्यालय और देश को होगा, तो कुछ फायदा तो दूसरा पक्ष भी उठायेगा ही। हमारे दोनों प्राफेसर्स प्रतिभाशाली हैं, उनके काम से ही हमारे नीलमणि विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है, पर अभी भी हमारा भावी साझेदार विदेशी विश्वविद्यालय और उसके प्रोफेसर्स हमसे बहुत आगे हैं। फिर इस पी.जी. कोर्स के लिए निर्धारित चौबीस माह में से पहले इक्कीस माह तो हमारे ही पास हैं। हमारी डिग्री के आधार पर ही मात्र तीन माह का अन्तिम प्रशिक्षण और प्रोजेक्ट वर्क ही तो विदेश में होना है।’

‘सर, यह भी तो एक बेहद अटपटा सा नियम बनाया जा रहा है। ऐसा कहीं होता है कि एक विश्वविद्यालय की प्रदत्त डिग्री पर अन्तिम मोहर कोई दूसरा विश्वविद्यालय लगाये? मुझे तो इसमें एक गहरी साजिश नजर आ रही है।’

‘क्या सिन्हा, तुम भी ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो, स्पेशल कोर्स के लिए मैनेजमेन्ट और सरकार कोई स्पेशल प्रावधान रखना चाहती है, तो तुम्हें इसमें साजिश नजर आने लगी! जब कोई नया नियम पहली बार बनता है, तो हमेशा ऐसा ही होता है। अब आप प्रो. जयेन्द्र और प्रो. नारंग के साथ हम दोनों की बैठक अरेन्ज कराओ और उसके बाद पाठ्यक्रम की तैयारी भी। साझेदारी के बारे में हमारे चान्सलर और प्रो. चान्सलर महोदय निश्चय कर चुके हैं और हम उस बारे में उन लागों को अब डिस्टर्व नहीं करेंगे।’ कहते हुए उपकुलपति महोदय ने अपनी कुर्सी से उठते हुए बैठक सम्पन्न होने का इशारा किया और प्रति उपकुलपति जी को जैसे तनाव से बाहर खींचने की कोशिश में बोले- ‘चलो यार! एक्जीक्यूटिव केन्टीन तक टहलते हुए चलते हैं, वहां बैठकर एक-एक कप चाय का आनन्द लेंगे। रजिस्ट्रार नारायणन को भी बुलवाता हूँ।’

कुछ ही दिन में कम्प्यूटर विज्ञान और न्यूक्लियर विज्ञान के समन्वय से पी.जी. स्तर का एक नया और विशेष पाठ्यक्रम प्रो. जयेन्द्र और प्रो. नारंग ने तैयार कर दिया, जो पूरे देश में अपनी तरह का अलग पाठ्यक्रम था। लक्ष्य था कम्प्यूटर विज्ञान और न्यक्लियर विज्ञान के पारस्परिक समन्वय की नई सम्भावनाओं की खोज तथा इस विषय पर कुछ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के भावी वैज्ञानिक तैयार करना। अमेरिका के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय को तयशुदा नियमों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय साझेदार बनाया गया। भारत के प्रधानमंत्री जी के द्वारा पाठ्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। पहले बैच में देश के बेहद प्रतिभाशाली पन्द्रह छात्रों को प्रवेश मिला। इक्कीस माह तक कड़ी मेहनत और नई-नई खोजों और समन्वय से दोनों युवा प्रोफेसर्स ने पी.जी. स्तर के इस पाठ्यक्रम को शोध स्तर तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इक्कीस माह के बाद जब इन पन्द्रह भावी वैज्ञानिकों को नीलमणि विश्वविद्यालय ने अमेरिका रवाना करने से पूर्व एक शानदार कार्यक्रम में अनन्तिम डिग्री सौंपी, तो इस अवसर का साक्षी बनने के लिए कई केन्द्रीय मंत्रियों तक में होड़ लग गई थी। छात्रों के साथ अमेरिकी विश्वविद्यालय ने विशेष निमन्त्रण और बतौर स्पेशल गेस्ट तीन माह के लिए प्रो. जयेन्द्र और प्रो. नारंग को भी बुलाया।

आज अमेरिकी विश्वविद्यालय में अपने छात्रों का आखिरी दिन था और नीलमणि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राठोर भी प्रो. सिन्हा के साथ वहां के समारोह में मौजूद थे। उनके मन में बेहद उत्साह था, कि कल जब अपने पन्द्रह होनहार भावी वैज्ञानिको के साथ वह भारत की भूमि पर लैण्ड करेगे, तो पूरा देश उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ेगा। लेकिन यह क्या.......? समारोह के बाद सभी पन्द्रह छात्र और दोनों प्रोफेसर्स उनके पास आये, उनके चरण-स्पर्श किये और लगे आशीर्वाद मांगने, ‘सर हम सबको यहां अमेरिका में बेहद उच्च पैकेज पर काम करने का अवसर मिल गया है। आप हमें आशीर्वाद दीजिए कि हम यहां अपने देश नाम रौशन ....!’

प्रो. राठोर को लगा जैसे वह गश खाकर गिर जायेंगे। बगल में खडे़ प्रो. सिन्हा ने उन्हे सहारा दिया, ‘सर, सम्हालिए अपने-आपको। अब अफसोस करने से कोई फायदा नहीं, आपके सपनों के ये सत्रह फूल तो भू-मण्डल के स्वामी की भेंट चढ़ चुके हैंे।‘