Thursday, March 21, 2013


      
कृति एवं कृतिकार
                     भगीरथ कृत पेट सबके है
           
                                         हितेश व्यास      

जिस प्रकार शिवराम का नाम नुक्कड़ नाटक के प्रारभ कर्त्ताओं में शुमार किया जाता है , उसी प्रकार भगीरथ परिहार लघु कथा के संस्थापकों और इस विधा के स्थापकों में से एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है , वरिष्ठतम लघु कथाकारों की  प्रथम पंक्ति में शामिल भगीरथ परिहार का यह संकलन दिशा  प्रकाशन, दिल्ली से सन् 2000 में प्रकाशित हुआ, किसी विधा के श्री गणेश कर्त्ताओं पर दोहरी जिम्मेदारी रहती है , उन्हें उस विधा में रचनाएं तो करनी ही होती है , उस विधा का सौंदर्य शास्त्र भी रचना पड़ता है भगीरथ परिहार ने ये जिम्मेदारी बखूबी निभाई है ‘पेट सबके है' की दस पृष्ठीय सुदीर्घ भूमिका ‘‘लघुकथा लेखन की सार्थकता’’ शीर्षक से आरम्भ में लिखी है , वह यूं ही नहीं है कृति में प्रवेश से पूर्व भगीरथ परिहार के विधा संबधित अन्य योगदान पर दृष्टिपात करते है.

भगीरथ परिहार ने 1972 -73 में लघुकथा केन्द्रित प्रथम पत्रिका ‘‘अतिरिक्त का सम्पादन किया ‘अतिरिक्त’ के अंकों में प्रकाशित रचनाएं लघुकथा की उत्कृष्ट उदाहरण है चूंकि उस समय तक लघुकथा विधा रूप में प्रतिष्ठित नहीं हुई थी , सम्भवतया इसीलिए पत्रिका का नाम करण ‘अतिरिक्त ’ किया  गया सन् 1974 में भगीरथ ने प्रथम लघुकथा संकलन ‘गुफाओ से मैदान की ओर’ का सम्पादन किया जिसमें उस समय के महत्व पूर्ण लघु कथा लेखक सम्मिलित थे, इस संकलन का शीर्षक यह सभंवतया इसलिए रखा गया कि उस समय तक लघु कथा विधा गुफाओं में कैद थी जिसे भगीरथ परिहार के समकालीन लघु कथाकार मैदान में लाये, भगीरथ ने लघु कथा के संदर्भ में कई सैद्धांतिक व व्यवहारिक समालोचना के आलेख लिखे। इतना ही नहीं, सन् 2004 में परिहार ने ‘‘राजस्थान की चर्चित लघु कथाएं व सन् 2003 में पंजाब की चर्चित लघु कथाएं पुस्तकों का सम्पादन किया, लघु कथा के चर्चित लेखकों व तत्कालीन रचनाकर्म पर टिप्पणियॉ की। मई 1975 में ब्यावर , अप्रेल 1977 में रावतभाटा 1980 में होशगाबाद 1987 में जलगांव, महाराष्ट्र 1988 में पटना , 1989 में बरेली, 2003 -2004 व 2007 में अंतर्राज्य लघुकथा सम्मेलनों में सन् 2011 में राजस्थान साहित्य अकादमी की संगोष्ठी में भागीदारी की । भगीरथ परिहार ने 200 से अधिक लघुकथाओं की रचना की और लघुकथा पर कई समीक्षात्मक आलेख सृजित किये।

प्रस्तुत संकलन में पचहत्तर लघुकथाएं है। शीर्षक लघुकथा ‘पेट सबके है’ अकाल में मजदूर के शोषण की कथा है। लूबा व देवा मजदूर है और मजबूर है । मजबूरी उनसे कम से कम पैसे में मजूरी करवा रही है । शोषक उनकी विवशता का लाभ उठाता है, पेट सबके हैं शीर्षक में सादगी और अनाकर्षण है , इससे लघुकथा विधा के दो लक्षणों का पता चलता है। एक तो यह कि यह रूप  आधारित विधा नहीं है , दूसरा यह कि यह कथ्य प्रधान है , 'आग' सम्पन्न और विपन्न की दुनियाओं की कथा है , सम्पन्न सर्दियों में विपन्न को कम्बल बांटने निकले है ।  विपन्न में चेतना युक्त कहता है, ‘‘दिनभर लूटो और रात के वक्त फर्ज निभाओ विपन्न में से बुधिया कहता है ‘हम गरीब सही भिखमंगे तो नहीं ‘चेतनावान नक्सली कहता है ‘‘अपनी लूट को इन्सानियत का जामा पहना रहे है। ‘‘सरदी बढ़ गयी है। आओ आग के पास बैंठेगे’’ के साथ लघुकथा का समापन होता है, 'सोते वक्त' वृद्ध दंपति के अकेलेपन की व्यथा कथा है संवाद के रंजन से अलग-थलगपन को पूरते है ‘गोली नहीं चली' वर्गसंघर्ष की कथा है , 'शर्त' मानव-मुक्ति की संघर्ष-कथा है , 'तुम्हारे लिए' लोकतंत्री प्रदर्शन और हड़ताल से आगे बढ़कर सशस्त्र संघर्ष की तैयारी की कहानी है , 'फूली' रूढ़िवादी ढोंग , पाखण्ड विरोधी सकारात्मक कर्म प्रर्वतक रचना है, 'बघनखे' अय्याश वर्ग द्धारा दैहिक शोषण की प्रतीकात्क लघुकथा है , 'दाल-रोटी' व्यवस्था द्धारा पालतू बनाये जाने की चालक कथा है , 'कनविंस करने की बात' आर्थिक लालच के लिए पति द्धारा पत्नी के दैहिक समझौते की पतन कथा है ,
 'खामोशी' कष्ट में भी जातिवादी दुराग्रह और विवशता जन्य पशुवत समाधान की करूण कथा है ,
'भीख' व्यवस्थागत सडांध की अस्पताली व्यथा है जिसमें पैसे के सर्वग्रासी शिकंजे की गिरफ्त दर्शायी गई है , 'युद्ध' आपातकाल का बिना नाम लिए उसके प्रभाव और दुष्प्रभाव की कथा है जो युद्ध के प्रभाव-दुष्प्रभाव पर भी चस्पां होती है 'शिखण्डी' व्यक्ति के समग्र पतन की क्रमिक कथा है जिसका अंतिम वाक्य ऐसे वर्ग चरित्र को उजागर करने वाला है , 'उपलब्धि और अनुपलब्धि के अंतिम घेरो के बीच झूलता हुआ जीवन के हर क्षेत्र में शिखण्डी सा खड़ा है ’’। "मजबूरी  और जरूरत" सम्बधों में आई आर्थिक स्वार्थपरता, रिश्ता निभाने की मजबूरी स्त्री को भोग्या समझने की पुरूष सोच, पुरूष की विवाहेतर विलासिता आदि बिन्दुओं को उठाने वाली लघुकथा  है। ‘हक’ एक स्त्री चेतना की कथा है , संपति में पुत्री के हक की आड़ में एक दामाद अपने सास-ससुर पर दावा करना चाहता है परंतु पुत्री पति के बहकावे में नहीं आती है बल्कि पति के मंसूबों को उसी के समक्ष उजागर कर देती है ।  ‘कछुए’ सम्बधों के सैद्धांतिक विवेचन की सामयिक व्याख्या प्रतीकात्मक रूप से करती है ,
‘सूनाआकाश ’ रेबारियों की व्यथा - कथा है , रोटी के लिए भटकाव और त्रासदियों का सिलसिला , ‘नाटक' रोजगार देने के नाटक का पर्दाफाश करती है , अज्ञानी साक्षात्कार कर्ता इंटरव्यू का नाटक करते है , योग्यता को बाहर का रास्ता दिखाते है और सिफारिशी  को लेते हैं, ‘सही उपयोग’ चुनाव के समय व्यवस्था का चेहरा दिखलाती है , ‘सयानी लड़की’ स्त्री के जागरूक होने की कहानी है यह प्रासंगिक रचना है , जो चेतना इक्कीसवी सदी के दूसरे दशक में नजर आ रही है उसका पूर्वाभास भगीरथ परिहार को बीसवीं सदी के अंत में हो गया था, "शहंशाह और चिड़िया" सत्ता के दुष्चक्र और जनता की स्वाधीनता की कथा है  , ‘मकान’ में दूसरे के अहित की कीमत पर स्वहित पूर्ति की कुत्सित कामना है , "अपना -अपना दर्द" में घरेलू बाईयों की वेदना है तो साथ ही सुखी व्यक्ति के दुख का चित्रण है ,

"मेह बरसे तो नेह बरसे" शीर्षक के अनुरूप मेह के महत्व को रिश्तों की सरसता से जोड़ने वाली रचना है , "दोजख" में नर्क की पारम्परिक कल्पना का सहारा लेते हुए कथाकार उस व्यक्ति को दोजख की आग में झोंकता है जो कारूणिक दृश्य का मात्र दृष्टा बना रहता है और संवेदनहीनता का परिचय देता है "‘पिता ,पति और पत्नी" एक भारतीय स्त्री की धैर्य गाथा है , पति शराबी है , पुत्र मॉं से अलग बसने का सुझाव देता है पर पत्नी पति को नियति मान लेती है "ओवर टाइम" स्वार्थपरता से उत्पन्न संवदेनहीनता को व्यक्त करती है , "टेक्टिकल लाइन" में साहित्य में व्याप्त समझौतापरस्ती का चित्रण है , "शाही सवारी" राजनेताओं की अगवानी में जनता के पिसने की सनातन कथा हे ‘आत्मकथ्य’ श्रमिक के त्याग और प्रतिदान में अभावों का अनंत क्रंदन है , ‘दुभवाला आदमी’ शोषक के समक्ष शोषित की समर्पण कथा है , "औरत" में स्त्री का हिंसक प्रतिशोध है , ‘जनता-जनार्दन’ में विद्रोह की संभावना का दमन करके जनता का शाश्वत शोषित स्वरूप दर्शाया  गया है , "लोमड़ी" में राजनीति की कुटिलता है ‘शिक्षा’ में वर्तमान शिक्षा के विद्रुप से साक्षात है , "राहतकार्य" व्यंग्य कथा है जिसका समापन मुख्य मंत्री के इस कथन से होता है , ‘‘हमारे विधायक होकर साढ़े सत्ताईस रूपये के कपड़े पहने रहे तो देश से गरीबी कैसे समाप्त होगी’’ ‘अवसरवादिता’ राजनैतिक अवसरवादिता केन्द्रित रचना है , "चियर्स" नेताओं की कथनी-करनी के स्पष्ट अंतर को रेखांकित करती है , ‘दशहत" आर्थिक शोषण की पंचतंत्री कथा है , "यस सर" व्यवस्थागत सांठ गांठ प्रगट करती है , "गंगाजल" रूढ़िवाद के परिणाम स्वरूप कर्जदार होने की रचना है , ‘बेदखल’ अपनों की बेरूखी बताती है , "लोकतंत्र के पोषक" में भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री के इस्तीफे और कुछ अंतराल के बाद पुनः चुन लिये जाने की चिर प्रासंगिक बानगी है , ‘आधी रोटी की तसल्ली" जनता की संतोषवृत्ति और समझौता परस्ती बयान करती है , ‘सभा चालू रखो' प्रतिरोध कुचलने की कथा है , ‘दौरा’ में व्यवस्थागत भ्रष्टाचार की पुख्तगी है ‘ "मोहभंग" मेँ व्यवस्था से मोहभंग के बावजूद टूटन न बताकर यह संकल्प व्यक्त हुआ है , ‘‘मै कदापि फ्रीज नहीं होउंगा,’’। "अंतर्द्वंद्व" प्रतिरोध की तैयारी की कहानी है ‘रोजगार का अधिकार" न्याय व्यवस्था की पोल खोलती है ‘चेतना' संघर्ष के लिए सचेत होने की प्रेरक कथा है , "आंतक" के मूल में सांप्रदायिकता है , कथाकार नब्ज पर अंगूली रखता है ‘‘आदमी को अंधा बनाने की कीमियागीरी इन्हीं गुरूद्धारों, मस्जिदों और मंदिरों में व्याप्त है, "अंधी दौड़" मेँ आम आदमी के जीवन संघर्ष की अनन्त यात्रा को प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति मिली है ‘रोमांस के रंग' प्रेम कथा है पर यथार्थ की धरती पर। "अंतहीन उंचाइयॉं" में कथाकार मनुष्य का ध्यान प्रकृति के अमिट सौन्दर्य की ओर ले जाता है , ‘धापू घाचण सोचती है’ में आम आदमी की तुलना घाणी के बैल से की गई है , खास कर औरत जात की, ‘अधेरे द्धीप प्रकाश की खोज करके अपना अंत आशावादी करती है , ‘‘फैसला’ व्यवस्था की मिली भगत की कहानी है , "आत्महंता" बेरोजगार युवक के आत्महंतत्व की क्रमिक कथा हे , हड़ताल भगीरथ परिहार के शैल्पिक कौशल का उदाहरण हे , इसमें एक - एक शब्द एक -एक वाक्य की तरह है , शैलीप्रधान होते हुए भी कथ्य प्रधान है और मजदूर के अनन्त संघर्ष की अंतहीन कहानी कहती है, ‘टूल’ आम आदमी के मोहरा बनने की कथा है , ये तो हुई भगीरथ परिहार की लघु कथाओं पर विहंगम दृष्टि , अब हम समीक्ष्य संकलन में भूमिका रूपी आलोचना शास्त्र में प्रवेश करते है जिसे भगीरथ ने ‘लघुकथा लेखन की सार्थकता शीर्षक दिया है ,

       भगीरथ बताते है कि लघु कथा एक सर्वपठनीय एवं सहज बोध गम्य विधा है , ये रचनाएं कम समय में ज्यादा पाने का एहसास देती है लघुकथा संप्रेषणीय  होती  है  लघुकथा जनविधा है जो जन भाषा का प्रयोग करते हुए जनता के दुख -दर्दो और आकांक्षाओं को व्यक्त करती हे , लघुकथा एक प्रहारक विधा है जो राजनैतिक पैंतरेबाजी, भ्रष्टाचार अत्याचार और अनैतिकता पर प्रहार करती है, लघुकथाएं बताती है कि सामाजिक रिश्तों में कितना ठंडापन आ गया है और व्यक्ति कितना आत्मकेन्द्रित हो गया है!
भगीरथ लघुकथा का मर्म व्यक्त करते हैं, इस विधा ने साम्प्रतिक जीवन की जटिलताओं को सरलीकृत रूप में प्रस्तुत किया, यही वह विधा है जिसने छोटे आदमी के छोटे-छोटे संघर्षो को  वाणी दी है , अब महानायक का समय नहीं रहा बड़ी -बड़ी त्रासदियॉं घटित नहीं होती, जीवन अपनी गति से बहता है उसमें अनावष्यक नाटकीय उतार-चढ़ाव और अप्रत्याषित मोड़ नहीं आते, रोजमर्रा की छोटी -छोटी घटनाएं लघु -कथा में घटती है , इस प्रकार यह विधा बेहतर समाज निर्माण की भूमिका तैयार करती है , लघु कथा आज की विसंगतियों , विरोधाभासों और विडम्बनाओं पर सटीक चोट करती है, पतनशील मूल्यों व नितांत स्वार्थ-परता पर व्यंग्य करती है, इसके प्रभाव में बच्चे से बूढ़े , सामान्य पाठक से गंभीर चिंतक तक है, रवीन्द्र नाथ टैगोर , खलील जिब्रान , शेखसादी जैसे महान लेखकों ने लघु कथाएं लिखी है ।इसमें किस्सागोई से दार्शनिक फलसका तक समाया हुआ है। भगीरथ लिखते हैं कि कोई भी विधा तभी संपुष्ट होती है जब लेखक उसे सम्पुर्णतः अपनाते है और अपनी मुख्य विधा बनाते है कई लेखक हैं जिंहोने मात्र इसी में लिखा है और  लघुकथा ही से निज पहचान निर्मित की है लघुकथा की तीक्ष्ण दृष्टि वहीं पहले जाती है जहॉं व्यक्ति, परिवार, समाज या व्यवस्था में संड़ांध आ रही है इसलिए चाहकर भी शोषक -षासक इस विधा का निज हितार्थ उपयोंग नहीं कर सकते , यहॉं तक कि प्रेम और रोमांस के लिए इस विधा में स्पेस नहीं है, भगीरथ कहते है कि लघुकथा आसान विधा नहीं है , न यह वह विधा है जो चटपटी मसालेदार सामग्री मुहय्या कराती हो,

       यहॉं तक कि भगीरथ ने लघु कथा समीक्षा के मानदण्ड तय कर दिये, कथानक, कथ्य, भाषा शैली, संवाद , प्रभाव, संप्रेषण, कसावट, मूल्य -बोध इस विधा के मानक है , लघुकथा के लघु कलेवर में अनावश्यक प्रसंग, विवरण व विस्तार की गुंजाइश  नहीं है, सवांद चुस्त -सटीक एवं संक्षिप्त होने चाहिए, लघु कथा की भाषा जीवन्त, प्रवाहमयी सांकेतिक व व्यंजनात्मक होनी चाहिए, लघु कथा की भाषा दो टूक, व्यग्यात्मक जनभाषा होनी होनी चाहिए लघुकथा का कथ्य पैना, प्रहारात्मक, मार्मिक हृदयस्पर्षी, नई जमीन तोड़ने वाला, वैविध्यपूर्ण, एकान्वितियुक्त होना चाहिए, कथानक सामान्य जीवन से, सामाजिक सरोकारों से  उठने वाले, छोटे काल खंड में समाहित हों, जटिल व लम्बे न हो, लघुकथा संप्रेषित होकर ही सौन्दर्यबोध जगाती है, भगीरथ निर्मम समीक्षा के पक्षधर नहीं है, वे कहते है, "समीक्षा के मानदण्ड श्रेष्ठ रचनाओं को आधार बनाकर तय किये जाते हैं न कि मानदण्ड के आधार पर श्रेष्ठ रचनाएं रची जाती है, आठवें दशक में क्यों अचानक  यह विधा महत्वपूर्ण हो गई, परिहार लिखते हैं, ‘‘मामूली आदमी के मामूली जीवन में महत्वपूर्ण होती मामूली बातों की अभिव्यक्त्ति लघुकथा कर सकती थी ,जो कथ्य की प्रमुखता पर बल देती थी " , वे कहते है कि कथ्य की अस्पष्टता लघुकथा को कमजोर कर देती है, इसमें प्रधान तथा गौण कथ्य समानानंतर नहीं चल सकते भगीरथ लिखते है , प्रभाव में लघुकथा 'घाव करे गंभीर' प्रकृति की होती है, लघुकथा नीतिकथा की तरह  निष्कर्ष नहीं देती , कथ्य कभी प्रछन्न भी हो सकता है लघुकथा की सरंचना परिहार कुछ यूं परिभाषित करते है, ‘‘लघुकथा अक्सर द्धंद्ध से आरंभ होकर तेजगति से चरम की ओर चलती है तथा चरमोत्कर्ष पर अप्रत्याशित ही समाप्त हो जाती हे , लघुकथा का अंत अक्सर चौंकाने वाला तथा हतप्रभ करने वाला होता है, इस तरह का अंत पाठक की जड़ता को तोड़ता है" लघुकथा का कथानक सामान्य जनों की आकांक्षाओं , सपनों संघर्ष और दुख को व्यक्त करते है, अक्सर लघुकथा जीवन की कुरूपता पर फोकस करती है, लघुकथा में अमूर्त कथानक कम मिलते है, न इसमें परिवेश  के विस्तृत विवरण होते है, न चरित्र चित्रण, जनभाषा में व्यक्त होने पर  लघुकथा मुहावरें, लोकोक्तियों व व्यंग्योक्तियों से भाषा सौन्दर्य लाती है, लघुकथा का कथ्य विचारधारात्मक भी हो सकता है और संवेदनात्मक भी ।

कथानक मौलिक यथार्थपरक व विश्वसनीय होना चाहिए। अंतियथार्थवादी, अतिरंजित, वीभत्स कथानक लघुकथा के लिए वर्जित है, इसमं उपकथाएं व अंतःकथाएं नहीं होती लघुकथा का कथ्य व्यवस्थाजन्य विकृतियों विषमताओं और विसंगतियों पर केन्द्रित रहते है, लघुकथा राजनैतिक-प्रषासनिक भ्रष्टाचार अवसरवाद व छ्द्म मानवीय सम्बंधों का उद्घाटन करती है, भगीरथ परिद्धार ने लघुकथा की ये शैलियॉं परिगणित की हैः- 1  विरोधाभास    2  रूपक   3 संवाद   4  पैरोडी   5  प्रतीक   6   व्यग्य   7  दृष्टांत  8  अतिरंजना    9  एकालाप  10  गद्यगीतात्मक  11  फेंटेसी   12  आत्मकथात्मक या संस्मरणात्मक   13  अमूर्त  ।   इस प्रकार भगीरथ परिहार ने पहले भूमिका के रूप  में सेद्धांतिकी  उपस्थित की, तदन्तर व्यहारिकी के रूप में अपनी पचहत्तर लघु कथाएं रखी। लघुकथा के सौन्दर्यशास्त्र और उसकी पुष्टि के लिए प्रतिनिधि पचहत्तर लघु कथाओं हेतु भगीरथ परिहार बधाई के पात्र है।

###########################################################


हितेश व्यास ,1 -मारुति कॉलोनी,पंकज होटल के पीछे ,नयापुरा ,कोटा -1(राजस्थान ) फोन 0744-2332599, 9460853736