Monday, September 5, 2011

इन्टरनेट का मन्दिर

डा. उमेश महादोषी


प्रतीक बेहद निराशा की स्थिति में पापा के बेड के पास जमीन पर बैठा हुआ था। ‘साल भर ही तो हुआ है, पापा ने कितने अरमानों के साथ अपनी तमाम जमा-पूँजी लगाकर उसका दाखिला मेडीकल में करवाया था। और पापा आज स्वयं इस स्थिति में.....। कितने ही डाक्टर्स को दिखा लिया पर बीमारी का ही पता नहीं चल पा रहा है और उनकी हालत दिनोंदिन सीरियस होती जा रही है.....!’ प्रतीक की अपनी पढ़ाई तो आगे हो पाना असम्भव ही हो गया है, क्यों कि पापा के इलाज के लिए भी अब परिवार की सम्पत्तियां बेचने की नौबत आ चुकी है। ....‘हे भगवान! अब क्या करूँ..... !’

अचानक उसके दिमांग में एक विचार आया, क्यों न इन्टरनेट पर सर्च की जाये! मेडीकल की भाषा तो वह इस एक वर्ष में समझने ही लगा है। हो सकता है पापा की बीमारी का कोई समाधान मिल जाये! ग्लोबलाइजेशन के इस जमाने में तो हर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकल आता है....!’ और प्रतीक अपना लैपटाप खोलकर इन्टरनेट पर सर्च करने बैठ गया।

तीन-चार घंटे तक लक्षणों के आधार पर बीमारियों, विभिन्न बीमारियों के लक्षणों तथा मेडीकल केस स्टडीज आदि के सन्दर्भ में गहन खोज के बाद अचानक एक ऐसे केस का पता चला, जिसमें पैसेन्ट की बीमारी के लक्षण पापा की बीमारी से मिलते-जुलते थे। उसे यह भी पता चला कि इस पैसेन्ट का इलाज अमेरकिा के सुप्रसिद्ध डॉक्टर एबॉट ने किया था और वह इस तरह की बीमारियों पर शोध भी कर रहे हैं। प्रतीक ने अपने एक सीनियर प्रोफेसर डा. मिश्रा सर को कन्सल्ट करने के लिए फोन लगाया। डा. मिश्रा ने डा. एबॉट के बारे में बेहद उत्साहजनक जानकारी देते हुए बताया कि डा. एबॉट दिल्ली में बतौर विजिटिंग कन्सल्टेन्ट डा. शिराय के हास्पीटल में आते रहते हैं। हो सकता है उनका निकट भविष्य में भी कोई विजिट हो। डा. शिराय उनके परिचित हैं, वह थोड़ी देर में मालूम करके काल करेंगे। प्रतीक ने डा. मिश्रा को ‘थैंक्स सर’ कहकर फोन रखा तो एक आशा की किरण उसके अन्तर्मन में झांकने लगी थी। करीब आधा घंटा बाद इस अच्छी सूचना के साथ डा. मिश्रा सर का फोन आया कि डा. एबॉट परसों सुबह दिल्ली आ रहे हैं, और डा. शिराय ने उनकी रिक्वेस्ट पर उसी दिन शाम पाँच बजे का समय प्रतीक के पिता को देखने के लिए नियत करवा दिया है।

नियत दिन और समय पर डा. एबॉट ने प्रतीक के पापा का चैक अप करके बताया- ‘इस तरह के लक्षणों वाले बहुत कम पैसेन्ट अब तक देखने में आये हैं और उनमें से एक-दो को छोड़कर कोई भी नही बचा है। दरअसल इस बीमारी के बारे में किसी पैसेन्ट पर कुछ एक्सपेरीमेन्ट जरूरी हैं, इसके लिए वह अभी तक किसी पैसेन्ट को तैयार नहीं कर पाये, अतः उनका शोध अधूरा ही है। परीक्षण पूरी तरह रिस्की है और पैसेन्ट के बचने की सम्भावना दो-चार प्रतिशत से अधिक नहीं है। आपके पैसेन्ट के बारे में भी इलाज न होने या वर्तमान सीमित नॉलेज के आधार पर इलाज किए जाने पर भी बचने की सम्भावना इससे अधिक नहीं है। और यदि आप लोग मुझे नियत परीक्षण इनके ऊपर करने की इजाजत दे दें, तब भी यही सम्भावना है। इनका बेटा मेडीकल पढ़ रहा है, वह मेरी बात को शायद समझ सके। परीक्षणों के बाद यदि बीमारी की पहचान और उसके निदान के अपने अनुमानों को कन्फर्म कर पाया, तो आपका पैसेन्ट तो बच ही जायेगा, भविष्य में इस बीमारी से अन्य लोगों को बचाना भी सम्भव हो जायेगा। न बचने की स्थिति में मैं अधिक कुछ तो नहीं कर सकता, पर कम्पन्सेशन के तौर प्रतीक की शेष पढ़ाई के व्यय के साथ कुछ और भी वित्तीय मदद आपके परिवार की करने को तैयार हूँ।’

विदेशी डॉक्टर की बात सुनते ही प्रतीक के दादा जी क्रोध में आ गये- ‘ये विदेशी हमें समझते क्या हैं! हम यहाँ इलाज कराने आये हैं या अपने बीमार बेटे को इनकी खोज के लिए बेचने .......!’ उस वक्त हॉस्पीटल में मौजूद कुछेक पत्रकारों को पता चला, तो उन्होने भी इस मसले को ‘भारतीय बनाम विदेशी’ रंग मे रंगकर कई टी.वी. चैनलों पर प्रसारित करवा दिया। शाम होते-होते मुद्दा पूरे मीडिया में छाने लगा।

प्रतीक ने इस पूरे मसले पर पापा के बारे में डॉक्टर एबॉट के बताए गये फैक्ट के साथ-साथ मेडीकल और सामाजिक नजरिए से सोचा, तो वह परेशान होने लगा। उसे लगा कि परीक्षण करना ही सही विकल्प है, पर दादाजी को कैसे समझाये, माँ से कैसे बात करे? काफी सोच विचार के बाद वह डाक्टर एबॉट से अकेले में मिला, और सारे प्रकरण में उनको लक्ष्य बनाये जाने पर माफी मांगते हुए परीक्षणों के लिए अपने परिवार को तैयार करने के लिए कुछ वक्त मांगा। डॉक्टर एबॉट ने इस पर सहृदयता दिखाते हुए कहा- ‘मैं समझ सकता हूँ।’

इसके बाद प्रतीक ने साहस करके अपनी माँ और दादाजी को समझाया- ‘परीक्षण न करने पर हमें क्या हासिल होना है, पापा के बचने की सम्भावना न के बराबर है। और यदि परीक्षण के बाद उन्हें बचाया जा सका तो हमारी खुशियाँ तो लौट ही आयेंगी, हम मेडीकल साइन्स की प्रगति और समाज की भलाई में भी सहभागी बन जायेंगे ......। इसलिए प्लीज आप अपनी सहमति दे दीजिए.....!’ कई घंटे तर्क-वितर्क चला, और अन्ततः दादाजी मान गये। अगले दिन पूरा परिवार डॉक्टर एबॉर्ट से मिला, और पिछले दिन जो कुछ हुआ, उसके लिए उनसे क्षमा मांगते हुए परीक्षण और इलाज करने का अनुरोध किया।

सौभाग्य से परीक्षण सफल रहे। बीमारी की सही पहचान और निवारण को लेकर डॉक्टर एबॉट के अनुमान बिल्कुल सटीक निकले। पूरे मीडिया में इस प्रकरण के दूसरे और सही पक्ष की चर्चा भी पूरे देश ने देखी-सुनी। प्रतीक के पापा का इलाज सफलतापूर्वक हुआ और अगले कुछ माह में पूरी तरह ठीक हो गये।

आज घर में खुशियों-भरा माहौल था। प्रतीक की माँ ने सभी लोगों से भगवान का धन्यवाद और दर्शन करने मन्दिर चलने का अनुरोध किया तो प्रतीक ने याद दिलाया- माँ, असली कृपा करने वाला भगवान तो इन्टरनेट है, जिसने हमें डॉ. एबॉट से मिलवाया। और इस ग्लोबल भगवान का मन्दिर यह मेरा लैपटाप है, पहले इसके आगे तो मत्था टेक लो .....! और .... यदि हम सब अपने सामाजिक नजरिए को परिवार और देश की सीमाओं से परे भी विस्तार दे पायें तो........!

No comments:

Post a Comment