Friday, July 29, 2011

प्रेमचंद और लघुकथा विमर्श :-



भगीरथ

प्रेमचंद के लघुकथा साहित्य के संदर्भ में समकालीन लघुकथाओं की पड़ताल करना समीचीन होगा ! प्रेमचंद ने मुश्किल से बीस लघुकथाएं लिखी हैं । जो विभिन्न कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई है । इन कथाओं का कलेवर कहानी से छोटा है ,इस छोटे कलेवर में मामूली लेकिन महत्वपूर्ण कथ्यों को अभिव्यक्त किया गया है ।

आधुनिक हिंदी लघुकथा के जिस आदर्श रूप की परिकल्पना हम करते हैं , प्रेमचंद की लघुकथाएं कमोवेश उसमें फिट बैठती है । 'राष्ट्र सेवक ' चरित्र के विरोधाभास को खोलती है , कथनी - करनी के भेद को लक्ष्य कर राष्ट्र सेवक पर व्यंग्य करती है , इस तकनीक में लिखी सैकड़ो लघुकथाएं आज के लघुकथा साहित्य में मिल जायेगी !

'बाबाजी का भोग'एक बेहतरीन लघुकथा है जिसमें परजीवी साधुओं के पाखंड को बेनकाब किया गया है । धर्म भीरू मेहनतकश गरीब लोग उनके शिकार हो जाते हैं । गरीब लोगों के मुहँ का निवाला छीनकर स्वयं छ्क कर भोग लगाते हैं । प्रेमचंद धैर्य पूर्वक कथा कहते हैं । इनकी कथाएं तीव्रता से क्लाइमेक्स की ओर नहीं बढ़ती बल्कि धीरे - धीरे शिखर का आरोहण करती हैं जबकि आधुनिक लघुकथाएं तीव्रता से शिखर की ओर बढ़ती हैं , जिससे उनमें कथारस की कमी आ जाती है ।

'देवी' लघुकथा में गरीब अनाथ विधवा के उदात्त चरित्र को उकेरा गया है और यह एक मुकम्मिल लघुकथा बन गयी है । 'बंद दरवाजा ' बाल मनोविज्ञान अथवा उनकी स्वाभाविक मनोवृत्तियॉ को व्यक्त करती है । बच्चा कभी चिड़िया की ओर आकर्षित होता है ,तो कभी गरम हलवे की महक की ओर ,तो कभी खोंचे वाली की तरफ , लेकिन इनसे भी ऊपर उसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी है । वह जगत की ओर उन्मुख है, उसे टटोलता है लेकिन बंद दरवाजा उसकी इस स्वाभाविक वृति पर रोक लगाता है उसने फ़ाऊंटेन पेन फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की ओर चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था ।

''यह भी नशा वह भी नशा '' में दो स्थितियों में तुलनात्मक दृष्टि से विरोधाभास को उकेरा है भांग का नशा हो या शराब का , नशे का परिणाम एक ही है लेकिन एक को पवित्र और दूसरे को अपवित्र मानना पांखड पूर्ण है आज का कथाकार इस कथा को लिखता तो उसका कलेवर और भी छोटा होता है लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि प्रेमचंद कहानीकार हैं उस समय लघुकथा विस्तार पूर्वक लिखने से इसमें लघुकथा की दृष्टि से कसाव की कमी है आधुनिक हिन्दी लघुकथा में इस तरह की तुलनात्मक स्थितियां बहुत सी कथाओं मिल जायेगी ।

प्रेमचंद की कई कथाएं कहानी का आभास देती है क्योंकि वे धीरे-धीरे विकसित होती है! वें प्रासंगिक प्रसंग भी जोड लेती है कुछ विस्तार भी पा लेती है और लघुकथा के कलेवर को लांघ भी जाती है! इससे उसमें कसाव की कमी आती है वे एक आयामी रहते हुए भी अन्य प्रसंग जुडने से बहुआयामी हो जाती है तब वे लघुकथा की सीमा ही लांघ जाती है!

"ठाकुर का कुँआ " मूल रुप से लघुकथा है लेकिन कुएँ पर खडी दो स्त्रियों की बातचीत ,ठाकुर के दरवाजे पर जमा बेफिक्र लोगो के जमघट जैसे प्रसंग उसे कहानी का ही आभास देते हैं ये कथा से प्रासंगिक होते हुए भी लघुकथा की दृष्टि से अनावश्यक है । स्त्रियों की बातचीत के प्रसंग को अलग लघुकथा में भी व्यक्त किया जा सकता था । इस तरह यह रचना बहुआयामी हो गयी है लेकिन जोर मूल कथ्य पर ही है और पाठक उसी कथ्य को ही पकड़ता है इसलिए इसे लघुकथा कहना अनुचित नहीं होगा । वैसे इन दो प्रसंगो को हटा दे तो एक बेहतरीन सुगठित लघुकथा प्रकट हो जायेगी ।

प्रेमचंद कहानी की तरह लघुकथा लिखते हैं उनकी बहुत सी कथाओं में उत्सुकता बनी रहती है जो पाठक को अंत तक बांधे रखती है, कथा के आरम्भ से आप कथ्य का अनुमान नहीं कर सकते , जबकि आज की लघुकथाओं में आरंभ या शीर्षक से ही कथ्य का अनुमान लगाया जा सकता है , जिससे उत्सुकता का तत्व ही समाप्त हो जाता है । कथा एक रहस्य को बुनती है जो अंत मे जाकर खुलता है । इस संदर्भ में ''गमी'' कथा विशेष तौर पर दृष्टव्य है लेकिन इसकी भाषा शैली और तेवर हास्य- व्यंग्य का है जो हास्य- व्यंग्य कालम के लिए फिट है । 'शादी की वजह ' खालिस व्यंग्य है इसे कथा की श्रेणी में रखना मुश्किल है क्योंकि इसमें कोई मुकम्मिल कथा उभरकर नहीं आती । बहुत से बहुत व्यंग्यात्मक टिप्पणी कहा जा सकता है ।


'दूसरी शादी' निश्चित ही कथा है जो प्रचलित विषय को लेकर लिखी गयी है । इस कथा को इसके क्लाइमेक्स पर ही समाप्त हो जाना चाहिए , क्योंकि कथा यहीं पर अपना मंतव्य अभिव्यक्त कर देती है । लेकिन अन्तिम तीन पैरा "दूसरी शादी" के दूसरे आयाम को अभिव्यक्त करते हैं इस तरह यह रचना कहानी की ओर अग्रसर हो जाती है लेकिन कहानी बनती नहीं है । आधुनिक लघुकथाएं अकसर क्लाइमेक्स पर ही समाप्त हो जाती है ।लघुकथा में एक ही कथ्य व एक ही क्लाइमेक्स सम्भव है। कई क्लाइमेक्स कहानी / उपन्यास मे हो सकते हैं । अत: एक आयामी कथ्य लघुकथा की आत्यंतिक विशेषता है ।


'कश्मीरी सेव' का पहला पेराग्राफ प्रस्तावना के रुप में है जो निरर्थक न होते हुए भी लघुकथा के लिए आवश्यक नहीं है । ऐसे ही विवरणों से लघुकथा एक कहानी होने का अहसास देती है । कथा को पहले पेराग्राफ के बाद से पढ़े और 'दुकानदार ने जानबुझकर मेरे साथ धोखेबाजी का व्यवहार किया । इसके बाद इस घटना पर लेखक की टिप्पणी है इस तरह कश्मीरी सेव भी विस्तार का शिकार हुई है ।

ललकारने वाली वाणी और मुद्रा से भिक्षावृति करने वाले साधुओं का चित्रण 'गुरुमंत्र' मे है । धर्म भीरू लोग उन्हें डर के मारे कुछ न कुछ दे देते हैं । वे भिक्षा को भी अधिकार रूप मे मांगते हैं । वे ऐसे मांगते हैं जैसे हफ्ता नहीं देने पर गुंडा अनिष्ट करने की धमकी देता है प्रेमचंद पाखंड को उधाड़ने में माहिर हैं । आध्यात्मिक ज्ञान से शून्य ये साधु केवल गांजे की चिलम खींचने मे उस्ताद है यह कथा एक आयामी होने से लघुकथा ही है । दो - चार अनावश्यक पंक्तियों के अलावा विस्तार नहीं है ।

"दरवाजा" मनुष्य जीवन का साक्षी है वह अपने अनुभव ऐसे व्यक्त करता है ।जैसे सजीव पात्र हो ! दरवाजा मनुष्य की प्रवृत्तियों पर टिप्पणी करता है इस टिप्पणी का अंत आध्यात्मिक तेवर लिए हुए है। 'सीमित और असीमित के मिलन का माध्यम हूँ कतरे को बहर से मिलाना मेरा काम है मैं एक किश्ती हूँ मृत्यु से जीवन को ले जाने के लिए '! इस तरह की लघुकथाएँ आधुनिक लघुकथा साहित्य में बहुत कम उपलब्ध है। सौन्दर्य शास्त्र की दृष्टि से यह अच्छी लघुकथा है जो पाठकों को सुकून देती है !

दो बहनों के बीच हुए सम्वाद के माध्यम से कथा 'जादू' विकसित होती है पहले तकरार फ़िर तनुक मिजाजी फ़िर द्वेषता और अंत में दोनों के बीच रिश्ता बनता है!सम्वाद तकनीक में रचित सैकडों रचनाएँ आधुनिक लघुकथा में उपलब्ध हो जायगी ! भले ही उनमें नाटकीयता की कमी हो यह नाटकीयता सम्वाद पर आधारित कथाओं की जान है प्रेमचंद की इस कथा मे नाटकीयता खूब है !

'बीमार बहन' बाल पत्रिका में प्रकाशित हुई थी निश्चित ही बच्चों को ध्यान में रख कर लिखी रचना है! पर इसे किसी भी दृष्टि से लघुकथा नहीं माना जा सकता वस्तुत: यह कथा है ही नहीं ! इसमें कोई द्वन्द्व नहीं कोई शिखर या अंत नहीं ! सीधे - सीधे बीमार बहन के प्रति भाई की चिंता ,बहन की सेवा के माध्यम से व्यक्त है !

वैसे तो प्रेमचंद की कहानियो/लघुकथाओं में काव्य का अभाव ही रहता है लेकिन 'बांसुरी' में केवल काव्य तत्व का सौंदर्य ही है ! रात के सन्नाटें में 'बासुरी ' की स्वरलहरी को काव्यात्मक अंदाज में अभिव्यक्त किया गया है; लगता है जैसे कहानी के किसी भाग का टुकडा भर हो! यह लघुकथा नहीं है!



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