कुछ अनुत्तरित
प्रश्न जगदीश कश्यप संपादक मिनी युग व विक्रम सोनी संपादक लघुआघात द्वारा प्रेषित किये गए थे (बीस वर्ष से भी पहले ) . प्रश्न व भगीरथ के उत्तर निम्नानुसार है
प्रश्न १ कथानक के
दृष्टिकोण से लघुकथा में एक घटना या एक बिम्ब को उभारने की अवधारणा
लघुकथा में कहाँ तक सार्थक है ?
उत्तर १ –लघुकथा एक कथ्य प्रधान विधा है कथानक सहवर्ती
भूमिका में होता है घटना /एक स्थिति /मनःस्थिति को ही
कथा में वर्णित किया जा सकता है एक दृश्य
/बिम्ब को भी लघुकथा में पिरोया जा सकता है कई घटना वाले कथानक लघुकथा के लिए
त्याज्य है लघु आकार ऐसे कथानक के लिए स्पेस नहीं देता है एक ही
घटना के विभिन्न आयामों में कहानीकार जा सकता है लघुकथाकार के लिए उचित यही होगा की वह
घटना के एक आयाम /पहलू तक ही सीमित रहे उसे अपना पूरा फोकस एक ही आयाम पर रखना है और वहीँ
से उसका कथ्य निस्त्रित होता है
प्रश्न २ कहानी में
अधिकतर प्रकृतिगत पात्र जैसे पेड़- पौधे आदि उपादान नायक नहीं बनते जबकि
लघुकथा में ये
उपादान केंद्रीय पत्र की भूमिका निभा सकते
है इस विषय में आपके विचार क्या है ?
उत्तर २ –रूपक कथाओं के पारम्परिक भंडार में ऐसी कथाएँ प्रचुर
मात्रा में मिल जायगी जिनमें पशु पक्षी अपनी चारित्रिक
विशेषताओं के कारण कथा के पात्र बने है पेड़- पौधे और निर्जीव
वस्तुओं को भी पात्र बनाया गया है लेकिन
कम ये कथाएँ पूर्व निर्धारित उद्देश्य को
ध्यान में रखकर गढ़ी जाती है इनका उद्देश्य शिक्षा
देना रहता है जहाँ तक लघुकथा के सामर्थ्य की बात है तो आज के यथार्थ को भी इन्हीं
के माध्यम व्यक्त किया जासकता है हालांकि लिखी जा रही लघुकथाओं में इस तरह के
पात्र नहीं मिलते .
प्रश्न ३ लघुकथा में
कथ्य संरचना के अंतर्गत १ शब्द और वाक्य २ कथोपकथन का होना अत्यावश्यक है
या नहीं ? यदि है तो
शब्दों ,वाक्यों तथा कथोपकथनों में कौनसी
विशेषताएं आवश्यक है ?
उत्तर ३ कोई भी रचना
बिना शब्द एवं वाक्य के तो सम्भव नहीं है .वाक्य न हो तो शब्द तो हों ही
केवल शब्द मात्र से
रची रचनाएँ, दो –चार रचनाएँ ही प्राप्य है जिसमे मेरी लघुकथा ‘हड़ताल ‘व
मशकूर जावेद की ‘कैबरे’
अत:यह मानाजा सकता है कि वाक्य के बिना कथा रचना असम्भव है कुलमिलाकर भाषा के बिना
साहित्य लिखना संभव नहीं है .
जहां तक कथोपकथन का
सवाल है यह अत्यावश्यक तो नहीं पर परिस्थिति अनुसार आवश्यक जरुर है कई रचनाएँ वर्णन और
विवरण से ही गठित होती है जैसे किसी की मनस्थिति या कोई स्थिति को वर्णित करने
वाली रचनाएँ.फ्लैश बैक में जानेवाली रचनाएँ भी कथोपकथन का कम इस्तेमाल करती हैया नहीं भी करती
.साधारणतया लघुकथा में कथोपकथन आता है उससे कथा में जीवन्तता बनी रहती है अगर कथोपकथन से कथ्य
के सम्प्रेषण सटीकता ,तीव्रता और आसानी होती है तो लेखक अपनी रचना में इसका उपयोग
करेगा अन्यथा नहीं . कथोपकथन संक्षिप्त और कथा प्रवाह को आगे बढ़ानेवाले हों
प्रश्न ४ लघुकथा में
काल दोष का क्या महत्त्व है ?मसलन इसमें वर्षों और महीनों को बयान नहीं किया जा सकता .अगर किया
जा सकता है तो किस तरह ?
उत्तर ४ कभी कभी
कथ्य को अभिव्यक्त करने के लिए ऐसे कथानक चुने जाते है जिनका समय विस्तार वर्षों तक फैला हो
ऐसे कथानक कहानी के लिए मुकम्मिल है लघुकथा के लिए नहीं .समय के इस विस्तार को ही
लघुकथा के सन्दर्भ में काल दोष कहा गया है .कथ्य की एकांतिकता,विधा की लघुता ,
कथानक की
संक्षिप्तता के कारण कल दोष रहित कथानक लघुकथा के लिए उत्तम मानेजाते है लघुकथा
एक सुगठित और कसी
हुई विधा है इसलिए भी समय विस्तार वाले कथानक उपयुक्त नहीं है कल अंतराल को फ्लैश बैक शैली से पाटा जा सकता
है संक्षिप्तीकरण का सिद्ध हस्त लेखक भी अपने कथनों
,मुहवारोंवा
सूक्तियों से कल दोष की खाई को पाट सकता है
प्रश्न ५ कुछ लोग
कथोपकथन से अपनी रचना शुरू करते और कथोपकथन से ही समाप्त कर उसे
लघुकथा की संज्ञा
देते है .क्या इसे लघुकथा की परिधि में माना जा सकता है
उत्तर 5 कथोपकथन अप्रत्यक्ष रूप से वातावरण, देशकाल
इत्यादि का निर्माण करते हैं ;कथा के प्रवाह को आगे बढ़ाते हैं ,पात्रों की
विशिष्टताओं को दर्शाते है तो उन्हें कथा मानने से इंकार कैसे किया जा सकता है
अगर संवाद कथा की
पृष्ठभूमि,प्रवाह और अन्विति तक नहीं पहुंचाते है तब वह कोरा वार्तालाप
रह जायगा और कथा की
पूर्णता का एहसास नहीं दिला पायगा .जगदीश कश्यप ने ही वार्तालाप
को एकांकी की श्रेणी
में रखना चाहा था लेकिन एकांकी मंच पर अभिनीत की जाने वाली विधा है
जबकि कथा पढ़ी
जानेवाली विधा है इनकी जरूरते भी अलग अलग है इसमे द्दश्य संयोजन ,रंग
निर्देश ,पात्रों के
हावभाव ,वेशभूषा ,मंच पर उनकी स्थिति
मूवमेंट ,बोलने के अंदाज आदि तत्व
होते हैं जो लघुकथा
में नहीं पाये जाते विधाओं के घालमेल का
विवाद उचित नहीं माना जा सकता है
प्रश्न ६ लघुकथा की
भाषा कैसी हो ? आपके विचार ?
उत्तर 6 लघुकथा
की भाषा जहाँ तक सम्भव हो सरल व्यावहारिक जनभाषा होनी चाहिए. भाषा
में मुहावरे और
लोकोक्तियों का भी भरपूर प्रयोग होना चाहिए. भाषा पात्रानुकूल होना चाहिए लेकिन
क्षेत्रीय भाषा का अत्यधिक
प्रयोग आज के हिंदीभाषी के लिए बोधगम्य नहीं होगा. लंबे और जटिल वाक्य कथा के प्रवाह को
रोकते है रचना में उनकी वजह से क्लिष्टता आती है और कथ्य की संप्रेषणीयता को संदिग्ध बनाती है
आजकल भाषा के सम्बन्ध में एक और प्रवृति देखी गई है अंग्रजी शब्दों और वाक्यों का
अत्यधिक प्रयोग जो हिंदी लघुकथा के लिए उचित नहीं कहा जा सकता है
प्रश्न ७ लघुकथा
की शैली गठन पर अपने विचार दीजिए
उत्तर ७
कई शैलियाँ कथा
कारों के द्वारा अपनाई गई है संवाद शैली
काफी लोकप्रिय हुई है इसी तरह विरोधाभासऔर विडंबनात्मक शैली
का प्रयोग तो प्रत्येक कथाकार ने किया ही होगा इसके बाद व्यंग्य का भी लघुकथा में
खूब प्रचलन है .एकालाप , रूपक व दृष्टान्त प्रतीक ,फैटैसी,सस्मरण , अमूर्त व पत्र
शैली ,आत्मकथात्मक और आत्मविश्लेषण शैली
का भी कथाओं में प्रयोग हुआ है
प्रश्न ८ एक आदर्श
या श्रेष्ठ लघुकथा में किन किन विशेषताओं का होना आवश्यक है ?
ऐसी लघुकथाओं के एक
दो उदाहरण दिए जा सकते है
उत्तर ८ लघुकथा
सुगठित और कसी हुई होनी चाहिए द्वंद्व से आरम्भ होकर तेजी से गंतव्य तक
पहुंच कर अपने
मंतव्य को संप्रेषित करना चाहिए कथ्य जीवन
के यथार्थ को प्रतिबिम्बित करना चाहिए
समकालीन लघुकथा में
बोध,उपदेश और नैतिकता के पाठ नहीं हो इस बात का भी खास ख्याल रखा
जाना चाहिए कथानक हमेशा संक्षिप्त हों लंबे कई मोडों वाले
कथानक लघुकथा के लिए त्याज्य है
इसी तरह विवरण और
वर्णन भी त्याज्य है कथा में लेखक की सर्जनात्मकता झलकना चाहिए कही अखबार की
रिपोर्टिंग न हो जाए लघुकथा इस बात का लेखक को खास ध्यान रखना चाहिए